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भंवर में फंसे मनुष्य को उबारने के लिए लिखता हूं, बोरसी भर आंच पर चर्चा और इश्क इतवार नहीं पुस्तक विमोचित !

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●युवा लेखक संवाद में सवालों से रु-ब-रु हुए ख्यात लेखक यतीश कुमार..

छतरपुर : साहित्य बेहतर मनुष्य का निर्माण करता है। उसे ज्यादा विनम्र, ज्यादा संवेदनशील बनाता है। साहित्य मिट्टी से और पीड़ा से जुडऩा सिखाता है। मैं बेहतर मनुष्य बनने की यात्रा करते हुए साहित्य की शरण में आया। यह विचार गांधी आश्रम छतरपुर में आयोजित लेखक युवा संवाद कार्यक्रम में 1996 वैच के आईआरएस अफसर युवा कवि-कथाकार यतीश कुमार ने व्यक्त किए। बोरसी भर आंच कृति के लेखक ने पाठकों और युवाओं के सवालों के जवाब में कहा कि मेरी पृष्ठभूमि हिंदी भाषा के विद्यार्थी की नहीं रही है, मैं 40 की उम्र में हिंदी भाषा और साहित्य से एक पाठक की तरह जुड़ा। प्रबंधन की दुनिया से साहित्य और लेखन की दुनिया में मुझे मेरी पत्नी स्मिता खींच लाईं और डायरी लिखने की मेरी आदत ने मुझे लेखक बनाया। उन्होंने युवाओं से कहा कि आप हमेशा बालकनी से देखो, सड़क को सड़क से मत देखो। सड़क से अगले मोड़ के बाद सड़क कहां जा रही है वो भी नहीं दिखेगा।

आपने कहा कि निराशा के चाहे कितने ही कारण हों, जीवन जीने के लिए है, विसर्जित करने के लिए नहीं। आगे बढऩे के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जोखिम उठाने पड़ते हैं। जीवन निराशाओं और अपेक्षाओं से ऊपर है। जीवन का अपना सौंदर्य है। हम उसे पहचानें और जी भर कर जिएं।

राष्ट्रीय युवा संगठन और सर्व सेवा संघ के युवा सेल के प्रदेश स्तरीय युवा शिविर के दौरान मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की प्रदेश एवं जिला इकाई द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष प्रसिद्ध विचारक, लेखक कुमार प्रशांत ने किया। पूर्व आईएएस वरिष्ठ कवि-कथाकार राजीव शर्मा और वरिष्ठ लेखक, संपादक प्रो. बहादुर सिंह परमार ने विशिष्ठ अतिथि की आसंदी से पुस्तक पर अपनी राय साझा की। मप्र गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष, युवा कवि संतोष कुमार द्विवेदी ने इस सत्र का संचालन किया।

वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर बहादुर सिंह परमार ने कहा कि बोरसी भर आंच आत्मकथा व संस्मरण से परे एक अलग ही विधा है। इसमें जीवन की खुरदुरी सच्चाइयों को साझा किया गया है, उन्होंने कहा कि इस कृति को पढऩे के बाद ऐसा लगता है कि यह कहानी केवल यतीश बाबू की नहीं बल्कि हम सब की है। पूर्व आईएएस एवं वरिष्ठ कवि-कथाकार राजीव शर्मा ने कहा कि सत्ता के पंडों ने साहित्य को जो नुकसान पहुंचाया है उसकी भरपाई लेखन में ईमानदारी से ही की जा सकती है। अगर आपके हाथ में कलम है तो संसार में आप से बड़ा नायक कोई नहीं है। इस नायक से लड़ पाने और जीत पाने के लिए मैं यतीश कुमार को बधाई देता हूं।

इसके पूर्व इस कृति पर पाठकनामा में अपना अभिमत रखते हुए महेश अजनबी ने कहा कि बोरसी की आंच में यतीश कुमार ने स्त्री विमर्श को एक बहन के भाई और एक मां के बेटे के रूप में बेबाकी से लिखा है। यह किताब कविता से कहानी के बीच के सफर में लिखी गई है इसलिए इसमें कहानी के चरित्र और उसकी भावनाओं का अप्रतिम संयोग उभरता है।

अंकित मिश्रा ने कहा कि बोरसी भर आंच में सत्य का ताप आपको स्पर्श करता है तो सत्य को इतने खुले रूप में कहने का साहस चमत्कृत । निदा रहमान ने कहा कि यह पुस्तक अंतर्संबंधों की ताकत से परिचित कराती है। बड़ी बहन का जिम्मेदारी उठाते उठाते मां की भूमिका में आ जाना बहुत ही रोचक है।

●इश्क इतवार नहीं कविता संग्रह का विमोचन..

आयोजन के दूसरे भाग में निदा रहमान के कविता संग्रह इश्क़ इतवार नहीं का विमोचन हुआ। विमोचन में निदा की अम्मी जुबैदा खातून और अब्बा अब्दुल रहमान की शिरकत ने आयोजन को रोचकता और गरिमा प्रदान की।

विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि यतीश कुमार ने इस संग्रह के प्रति अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि निदा नाम आते ही मन में एक उम्मीद जागती है। यह नाम और लिखना वह भी इश्क पर लिखना बड़ी जिम्मेदारी का काम है। निदा के संग्रह में इश्क के कई पहलू मौजूद हैं। निदा का इश्क अधूरे वादों का मुकम्मल ख्वाब है। इस पुस्तक में ढेर सारा लम्हा है जिसे हर पाठक पढ़ते हुए जी सकता है।

प्रो. बहादुर सिंह परमार ने कहा कि यह संग्रह प्रेम के अनिवार्य होने की बात कहता है। इस पुस्तक में प्रेम यात्रा पर है और निदा प्रेम की बात करते हुए उसके साथ चलते चलते दूर तक पहुंचने की उम्मीद जगाती है। मुझे उम्मीद है कि निदा की साहित्यिक यात्रा दूर तक जाएगी।

राजीव शर्मा ने कहा कि इश्क़ को लव जिहाद कहने वाले इस युग में प्रेम का फूल खिलाने के इस साहस पूर्ण प्रयास को बधाई।

अध्यक्षीय उद्बोधन में गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने कहा कि शब्द का आपके साथ क्या रिश्ता है यह समझ बनाने के लिए राष्ट्रीय युवा संगठन शिविर आयोजित करता है। इसलिए युवा शिविर के दौरान इस साहित्यिक आयोजन की संगति भी है और प्रासंगिकता भी। गांधी ने प्रेम के व्यापक रूप को सिखाने में जान गंवा दी। इसलिए प्रेम शब्द के साथ रिश्ता जोडऩे और तमाम खतरे उठाने की हिम्मत ही आदमी को आदमी बना सकती है।
अपनी रचनाओं के संदर्भ में निदा रहमान ने कहा मैं इश्क़ की एक्सपर्ट नहीं हूं लेकिन प्रेम की भावाभिव्यक्ति में जिस अनुभूति, संवेदना और समर्पण की जरूरत है वह इस संग्रह में प्रकाशित हुआ है। प्रेम मनुष्य को मनुष्य बनाता है इसलिए उसमें छुट्टी या इतवार की गुंजाइश नहीं।

विमोचन के इस सत्र का संचालन नीरज खरे ने किया। राष्ट्रीय युवा संगठन और हिन्दी साहित्य सम्मेलन के इस संयुक्त आयोजन में गांधी स्मारक निधि दिल्ली के सचिव संजय सिंह, दमयंती पाणी, राष्ट्रीय युवा संगठन के राष्ट्रीय संयोजन समिति की सदस्य प्रेरणा देसाई, सर्व सेवा संघ की युवा सेल के राष्ट्रीय संयोजक भूपेश भूषण, प्रांतीय संयोजक शिवकांत त्रिपाठी, सुरेंद्र अग्रवाल, आभा खरे, उर्मिला अहिरवार, संजय जैन, प्रभात तिवारी, शिवेंद्र शुक्ला, शंकर सोनी सहित शहर के समाजसेवी और साहित्यकार उपस्थित रहे। विमोचन सत्र का संचालन मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन की छतरपुर जिला इकाई के अध्यक्ष नीरज खरे ने किया।

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Author: Parinda Post

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