●भगवाँ में इमाम हसन हुसैन सहादत पर निकले गये ताजिया..
@परिंदा: बॉबी अली
छतरपुर : मुहर्रम माह इस्लामिक कैलेंडर हिजरी सावन का पहला महीना होता है जिसका मुस्लिम समुदाय में विशेष महत्व होता है। मुहर्रम में पैगम्बर हजरत मुहम्मद के वारिस इमाम हसन हुसैन और उनके साथियों कि सहादत का शोक मनाया जाता है। इस दौरान मुहर्रम माह की 1 से 10 तारीख तक लोग रोजे भी रखते हैं।
जैसा कि कहा जाता है मुहर्रम में ताजिया को सजा कर सहादत को याद किया जाता है।
इस दौरान जिले के भगवाँ नगर में ताजिया और जुलूस मुख्य चौराहोंं से होकर बस स्टैण्ड से होते हुए पुरानी ईदगाह पहुंकहा उसके बाद नई ईदगाह होते हुए वापिस पुराना बाजार नई जामा मस्जिद ए अली हसन पहुंंचा। जहां फातिहा होने के बाद पटनाउ मोहल्ला में फातिहा होने मुख्य बसस्टैण्ड से कर्बला गये।
इस दौरान मुहर्रम पर्व के जुलुस में पुलिस और प्रशासन के द्वारा भी चाक-चौबंद और विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई थी।
●यह है मान्यता और कहानी..
गौरतलब है कि इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक 1400 साल पहले कर्बला की लड़ाई में मोहम्मद साहब के नवासे (बेटी का बेटा, नाती) हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हुए थे। ये लड़ाई इराक के कर्बला में हुई थी। लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था। इसलिए मोहर्रम में सबीले लगाई जाती है,पानी पिलाया जाता है, भूखों को खाना खिलाया जाता है।
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाया था, इसलिए मोहर्रम को इंसानियत का महीना माना जाता है। इमाम हुसैन की शहादत और कुर्बानी की याद में मोहर्रम मनाया जाता है। इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताज़िया और जुलूस निकाले जाते है।