भविष्य की आहट : डा. रवीन्द्र अरजरिया
दुनिया भर में कट्टरता की आग ने ज्वालामुखी बनकर मानवता को जलाना शुरु कर दिया है। बंगलादेश में तो खुलकर कत्लेआम चल रहा है, लूटपाट चल रही है और चल रही है समानान्तर सत्ता। चन्द मीरजाफरों की दम पर हथियारों के सौदागरों ने बंगालादेश में अपना वर्चस्व कायम कर लिया है। सीआईए सहित आईएसआई जैसे अनेक षडयंत्रकारी संगठनों के जासूसों ने वहां के मदरसों में जाकर मुल्क के कथित ठेकेदारों को विलासता, सम्पन्नता और सुरक्षित भविष्य की चासनी चटाई और उन्हें अपनों का ही दुश्मन बना दिया। छात्रों की आड में असामाजिक तत्वों ने अपनी स्वार्थ सिध्दि के हथकण्डे आजमाये और सफल भी हुए। इसके पहले श्रीलंका में भी ऐसे ही प्रयास किये गये थे। वहां की प्राथमिक सफलता के बाद बंगलादेश में व्यापक स्तर पर तैयारियां की गईं। एक वर्ग विशेष को चिन्हित करके उसमें असामाजिक तत्वों को प्रवेश दिलाया गया। धनबल के आधार पर जनबल को प्रभावित किया गया।
वास्तविक नेतृत्व को हाशिये पर पहुंचाकर संगठन पर कब्जा जमाने वाली कठपुतलियां को उनके सीमापार बैठे आका व्दारा नचाया जाने लगा। ऐसी जमातों के मध्य न तो अतीत की क्रूर दास्तानें मायने रखतीं हैं और न ही वर्तमान की घातक नीतियों के संकेत। स्वार्थ के दलदल में आकण्ठ डूबे मीरजाफरों को केवल और केवल व्यक्तिगत लाभ, भावी पीढियों का संरक्षण और स्वयं की विलासता ही दिखती है।
धर्म की सुरक्षा हेतु गुरुओं की शहादतों, जाति विशेष के नरसंहारों, आस्था के संरक्षण में मिली गोलियों से छलनी हुए शरीरों और आक्रान्ताओं के निर्मम प्रहारों तले रौंदी गई लाशों के इतिहासों तक को अदृष्टिगत करके लालचियों की भीड ने कलुषित मानसिता वाले दुश्मनों की गोदी में खेलना शुरू कर दिया है।
दुनिया भर में साम्प्रदायिकता के विस्फोट हो रहे हैं। केवल इजराइल अकेला ऐसा देश है जो कट्टरता के विरुध्द जी-जान से लड रहा है। उसके साथ कंधे से कंधा लगाकर चलने के लिए एक भी देश, एक भी संगठन और एक भी समूह खुलकर सामने नहीं आया। आतंक के दावानल को समाप्त करने के लिए संकल्पित इस राष्ट्र को अमेरिका जैसे देश भी समय-समय पर झटके दे रहे हैं। समूचा यूरोप खामोशी के साथ हमास, हिजबुल्लाह, हूती सहित कट्टरपंथी आतंकियों की हरकतें देख रहा है। इनसे प्रभावित अनेक देश स्वयं के संसाधनों से अपनी शान्तप्रिय आवाम की सुरक्षा में लगे हैं। आतंक को पोषित करने वाले छदम्मभेषधारी देशों के व्दारा पर्दे के पीछे से गजवा-ए-दुनिया का फतवा जारी कर दिया गया है। इसे जारी करने वाले तो पवित्र ग्रन्थ कुरान शरीफ की आयतों की मनमानी व्याख्यायें करके खुदा की आवाज को ही दबाने में जुट गये हैं। अल्लाह के इस्लाम की जगह मुल्ला का इस्लाम लागू होने लगा है। ज्यादातर मदरसों में इंसानियत की किताबें जला दी गईं हैं। उनके स्थान पर कट्टरता, निर्ममता और बरबरता के पाठ पढाये जाने लगे हैं।
ज्यादातर यतीतखानों को आतंकियों के अड्डों में तब्दील कर दिया गया है। अनेक दवाखानों से दहशतगर्दों को नियंत्रित किया जा रहा है। मानवता की आड में अमानवीय कृत्यों की नित नई परिभाषायें दी जा रहीं हैं। दुनिया भर में साम्प्रदायिक कट्टरता के अनेक रूप जेहाद के रूप में सामने आ रहे हैं। समूची इंसानियत को खून से नहलाने के लिए तैयारियां पूरी कर लीं गईं हैं।
जनसंख्या के अनुपात के नवीन विश्लेषणों ने तो आने वाले समय का खाका ही सामने रख दिया है परन्तु सत्ता के लालचियों की आंखों में अंतहीन विलासता का मोतियाबिन्द कुछ भी देखने नहीं दे रहा है। दलगत राजनीति का लबादा ओढकर व्यक्तिवादी लोगों की भीड ने आत्मघाती हथियारों का प्रयोग शुरू कर दिया है।
बंगलादेश की धरती पर समाजहित के चिन्तन को नकाब बनाकर सत्ता हथियाने का जो प्रयोग हुआ है, वह निश्चय ही आगे वाले समय में अन्य देशों में भी दोहराया जायेगा। आबादी के आधार पर गूंजने वाली आवाजों में अब काफिरों के कत्ल के फरमान भी जारी होने लगे हैं। अनेक देशों में तो गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को जुल्म के शिकंजे में तडफ-तडफ कर दम तोडने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
जलालत की इंतहां पर पहुंचती बलात्कारी घटनाओं से पूरे परिवार को नासूर देने का क्रम तेज किया जा रहा है। बेबस आंखों के सामने मासूमों के जिस्मों को रौंदा जा रहा है। जबरिया निकाह कराने, इस्लाम कुबूल करवाने और आंसुओं के समुन्दर में गैर मुस्लिम परिवारों को डुबोने की घटनायें आम होती जा रहीं हैं।
ईरान, पाकिस्तान, तुर्की, लेविनान, फिलिस्तीन जैसे अनगिनत राष्ट्रों की संयुक्त जमातें अब खुलकर गजवा-ए-दुनिया वाले अघोषित फतवे पर काम कर रहीं हैं। चीन, अमेरिका, फ्रांस जैसे देशों की सरकारें भी आतंकवादियों के इशारों पर नाचने लगीं हैं। शरणार्थियों की शक्ल में दाखिल होने वाले लोगों की संख्या में इजाफा होते ही वे अपने असली मंसूबे पूरे करने में जुट जाते हैं। दुस्साहस की कहानियां अब साहस के किस्सों पर हावी होती जा रहीं हैं। दया, मानवता, सहायता, सहयोग जैसे शब्दों के मायने खो चुके हैं। उनके स्थान पर कू्ररता, आतंक, अन्याय, बलात्कार सरीखी घटनायें काबिज होती जा रहीं हैं। यह सब कुछ केवल चन्द देशों तक ही सीमित नहीं है बल्कि समूची दुनिया को इसने अपनी गिरफ्त में ले लिया है।
ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि धरती पर आतंक के हथियार से एक और विश्वयुध्द की टंकार गूंज चुकी है जिसकी आवाज कहीं कम तो कहीं ज्यादा सुनाई दे रही है। मगर उससे बचा कोई भी नहीं है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।